क्या हुआ था जब भगवान विष्णु और भगवान शिव के बीच छिड़ा भीषण युद्ध? – 2025
भगवान विष्णु और भगवान शिव के बीच छिड़ा भीषण युद्ध?
एक समय ऐसा भी आया जब भगवान विष्णु और भगवान शिव के बीच छिड़ा भीषण युद्ध ? यह सिर्फ एक साधारण युद्ध नहीं था, बल्कि यह वह क्षण था जब पूरा ब्रह्मांड कांप उठा था!-हिंदू धर्म में भगवान विष्णु और भगवान शिव को सृष्टि के दो प्रमुख स्तंभों के रूप में देखा जाता है। विष्णु जी पालन हार हैं, जो सृष्टि के संतुलन को बनाए रखते हैं, और शिव जी संहारक हैं, जो अधर्म का नाश कर संसार को नई दिशा देते हैं। परंतु, क्या आप जानते हैं ?

इस रहस्यमयी और चौंकाने वाली कथा का संबंध भक्त प्रह्लाद, उनके पिता हिरण्यकश्यप और भगवान विष्णु के नृसिंह अवतार से जुड़ा हुआ है। यह कहानी केवल युद्ध की नहीं, बल्कि भक्ति, अहंकार, न्याय और देवताओं की अपरंपरागत लीलाओं की है। आइए, इस अविश्वसनीय कथा को विस्तार से समझते हैं।
हिरण्यकश्यप का आतंक – जब धरती पर छा गया अंधकार
प्राचीन काल में हिरण्यकश्यप नामक एक असुर राजा था, जिसने कठिन तपस्या कर भगवान ब्रह्मा से ऐसा वरदान प्राप्त कर लिया था, जिससे वह अमर हो गया था। उसके वरदान में यह शर्तें थीं:
- वह किसी मानव या पशु द्वारा नहीं मारा जा सकता।
- न दिन में, न रात में उसका वध हो सकता है।
- न अस्त्र (हथियार) से, न शस्त्र (किसी भी औजार) से वह मरेगा।
- न वह धरती पर मरेगा और न ही आकाश में।
इस वरदान के कारण हिरण्यकश्यप अजेय हो गया और खुद को भगवान मानने लगा। उसने अपनी प्रजा से कहा कि वे केवल उसकी पूजा करें और विष्णु भगवान का नाम लेना बंद करें।
परंतु, उसकी इस दुष्ट नीति को चुनौती दी उसके ही पुत्र प्रह्लाद ने, जो भगवान विष्णु का परम भक्त था। प्रह्लाद दिन-रात भगवान विष्णु का नाम लेता और उनकी भक्ति में लीन रहता। यह देखकर हिरण्यकश्यप आग बबूला हो गया और उसने अपने ही पुत्र को मारने की ठान ली!
प्रह्लाद पर हुए अत्याचार और होलिका दहन
प्रह्लाद को विष्णु भक्ति से रोकने के लिए हिरण्यकश्यप ने कई प्रयास किए:
- उसे ऊँचाई से फेंक दिया गया, लेकिन भगवान विष्णु ने उसे बचा लिया।
- उसे विष पिलाने की कोशिश की गई, लेकिन विष भी अमृत बन गया।
- उसे भूखा-प्यासा बंदीगृह में रखा गया, लेकिन भगवान की कृपा से उसे कोई कष्ट नहीं हुआ।
अंततः, हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका से सहायता मांगी। होलिका के पास एक ऐसा चमत्कारी वस्त्र था, जिससे वह अग्नि में जल नहीं सकती थी। योजना बनी कि होलिका प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठेगी, जिससे प्रह्लाद जलकर भस्म हो जाएगा।
लेकिन भगवान विष्णु की लीला देखिए! जैसे ही अग्नि प्रज्ज्वलित हुई, प्रह्लाद को तो कुछ नहीं हुआ, लेकिन होलिका उसी अग्नि में जलकर राख हो गई। यही घटना होलिका दहन के रूप में मनाई जाती है और इसी के अगले दिन हम होली का पर्व मनाते हैं।
नृसिंह अवतार – जब भगवान विष्णु ने तोड़ा वरदान का घमंड
होलिका दहन के बाद भी हिरण्यकश्यप का अहंकार कम नहीं हुआ। उसने प्रह्लाद से पूछा, “तुम्हारे भगवान कहां हैं?”
प्रह्लाद ने उत्तर दिया, “भगवान हर जगह हैं, कण-कण में हैं!”
गुस्से में आकर हिरण्यकश्यप ने अपने महल के एक स्तंभ को लात मारी और चिल्लाया, “क्या तुम्हारा भगवान इसमें भी है?”
और तभी वह चमत्कारी पल आया!
स्तंभ से भयंकर गर्जना हुई और उसमें से प्रकट हुए भगवान नृसिंह – आधे मानव और आधे सिंह के रूप में! उन्होंने हिरण्यकश्यप को पकड़कर महल के द्वार की चौखट पर ले जाकर अपनी जंघा पर रखा और अपने नुकीले नखों से उसका वध कर दिया।
यह वध कैसे हुआ, इस पर गौर करें:
- वह न दिन था, न रात – बल्कि संध्या समय था।
- नृसिंह भगवान न मानव थे, न पशु।
- उन्होंने न अस्त्र का प्रयोग किया, न शस्त्र का – बल्कि अपने नखों का उपयोग किया।
- हिरण्यकश्यप को न धरती पर रखा, न आकाश में – बल्कि अपनी जंघा पर रखा।
इस तरह भगवान विष्णु ने ब्रह्मा जी के वरदान का उल्लंघन किए बिना हिरण्यकश्यप का संहार कर दिया।
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भगवान नृसिंह का प्रचंड रूप – जब पूरा ब्रह्मांड डर गया!
हिरण्यकश्यप का वध हो जाने के बाद भी भगवान नृसिंह का क्रोध शांत नहीं हुआ। वे अत्यंत उग्र रूप में आ गए और पूरे ब्रह्मांड में विध्वंस मचाने लगे। देवताओं, ऋषियों, और स्वयं प्रह्लाद ने भी उनसे शांत होने की प्रार्थना की, लेकिन कोई प्रभाव नहीं पड़ा।
तब ब्रह्मा जी और अन्य देवताओं ने भगवान शिव जी से अनुरोध किया कि वे भगवान नृसिंह के क्रोध को शांत करें।
भगवान शिव का शरभ अवतार – जब शिवजी ने विष्णु को शांत किया!
भगवान शिव ने अपनी जटा से एक दिव्य अवतार प्रकट किया – जिसे शरभ अवतार कहा जाता है।
शरभ अवतार कैसा था?
- यह आधा सिंह और आधा विशालकाय पक्षी के रूप में था।
- इसकी सहस्त्र भुजाएँ थीं और इसके पंजे अति भयंकर थे।
- इसका पूरा शरीर प्रकाशमय था और इसकी आँखों से अग्नि निकल रही थी।
भगवान शिव के इस भयंकर रूप ने भगवान नृसिंह को अपने पंजों में पकड़ लिया और ब्रह्मांड के उच्चतम शिखर तक ले गए। वहां उन्होंने भगवान नृसिंह को शांत किया, जिससे सृष्टि में पुनः शांति स्थापित हुई।
निष्कर्ष – यह कथा हमें क्या सिखाती है?
भगवान विष्णु और भगवान शिव के बीच यह रहस्यमयी प्रसंग हमें कई महत्वपूर्ण बातें सिखाता है:
- अहंकार का नाश निश्चित है, चाहे वह कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो।
- सच्ची भक्ति हमेशा विजय प्राप्त करती है।
- भगवान विष्णु और भगवान शिव एक-दूसरे के पूरक हैं और सृष्टि के संतुलन को बनाए रखने के लिए आवश्यक हैं।
इस अद्भुत कथा से यह भी सिद्ध होता है कि जब भी अधर्म बढ़ता है, तब भगवान स्वयं धरती पर अवतार लेते हैं और धर्म की स्थापना करते हैं।
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अस्वीकरण (Disclaimer):
यह लेख हिंदू धर्मग्रंथों और पुराणों में वर्णित कथाओं पर आधारित है। इसका उद्देश्य धार्मिक और पौराणिक ज्ञान साझा करना है, न कि किसी की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाना। पाठकों से अनुरोध है कि वे इसे आस्था और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से ग्रहण करें। किसी भी विवादित संदर्भ के लिए मूल ग्रंथों और विद्वानों की सलाह लेना उचित होगा।