होलिका दहन की शुरुआत कब हुई थी ? होलिका दहन 2025
होलिका दहन की शुरुआत
होलिका दहन की शुरुआत प्राचीन सतयुग में हुई थी, जब भगवान विष्णु के परम भक्त प्रह्लाद को मारने के लिए उसकी बुआ होलिका ने आग में बैठने का प्रयास किया था। यह परंपरा तब से चली आ रही है और बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक मानी जाती है।

होली का त्योहार भारतीय संस्कृति में उल्लास, प्रेम और भाईचारे का प्रतीक है। इस पर्व की शुरुआत होलिका दहन से होती है, जिसे बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक माना जाता है। इस वर्ष होलिका दहन 2025 का विशेष महत्व है क्योंकि भद्रा काल के कारण शुभ मुहूर्त में कुछ बदलाव हुए हैं।
यह लेख आपको “होलिका दहन 2025: शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, पौराणिक कथा और महत्व” की पूरी जानकारी और इसके आध्यात्मिक व वैज्ञानिक महत्व के बारे में विस्तार से बताएगा।
होलिका दहन 2025 का शुभ मुहूर्त
होलिका दहन 2025 का शुभ मुहूर्त इस प्रकार है:
- फाल्गुन पूर्णिमा तिथि शुरू: 13 मार्च 2025, सुबह 10:35 बजे
- फाल्गुन पूर्णिमा तिथि समाप्त: 14 मार्च 2025, दोपहर 12:23 बजे
- भद्रा काल: 13 मार्च, सुबह 10:35 बजे से रात 11:26 बजे तक (भद्रा काल में होलिका दहन वर्जित है)
- होलिका दहन का शुभ मुहूर्त: 13 मार्च की रात 11:26 बजे से 12:30 बजे तक
नोट: अलग-अलग स्थानों के लिए मुहूर्त में अंतर हो सकता है, इसलिए स्थानीय पंचांग या ज्योतिषाचार्य से परामर्श करना उचित होगा।
भगवान नृसिंह का अवतार
भगवान विष्णु ने नृसिंह अवतार तब लिया जब हिरण्यकशिपु के अत्याचारों से पृथ्वी त्रस्त हो चुकी थी और उसका भक्त प्रह्लाद संकट में था। यह अवतार अर्ध-सिंह और अर्ध-मानव रूप में था, जिसे भगवान विष्णु ने सतयुग में लिया था।
नृसिंह भगवान की अवतार स्थली
भगवान नृसिंह का अवतार आंध्र प्रदेश के अहोबलम (अहुवलम) में हुआ माना जाता है। यहाँ पर नृसिंह भगवान के नौ स्वरूपों के मंदिर स्थित हैं, जिन्हें नव नृसिंह मंदिर कहा जाता है। यह स्थान भक्तों के लिए अत्यंत पवित्र और शक्तिशाली माना जाता है।
नृसिंह स्तंभ: भगवान के प्रकट होने का स्थान
हिरण्यकशिपु ने अपने महल के स्तंभ की ओर इशारा करके प्रह्लाद से पूछा था – “क्या तुम्हारे भगवान इस स्तंभ में भी हैं?”
प्रह्लाद ने उत्तर दिया – “हाँ, भगवान हर जगह हैं!”
क्रोधित होकर जब हिरण्यकशिपु ने स्तंभ पर प्रहार किया, तो उसी क्षण भगवान नृसिंह स्तंभ को फाड़कर प्रकट हुए और हिरण्यकशिपु का वध किया।
यह नृसिंह स्तंभ आज भी अहोबलम में स्थित है, जिसे पवित्र स्थल माना जाता है।
नृसिंह भगवान की विशेषताएँ
- अर्ध-सिंह, अर्ध-मानव रूप – यह दिखाता है कि भगवान की शक्ति किसी भी रूप में प्रकट हो सकती है।
- हिरण्यकशिपु का वध – भगवान ने उसे न दिन में, न रात में; न घर में, न बाहर; न भूमि पर, न आकाश में; न अस्त्र से, न शस्त्र से मारा।
- भक्त प्रह्लाद की रक्षा – यह अवतार भक्ति की शक्ति और सत्य की जीत का प्रतीक है।
नृसिंह भगवान के प्रमुख मंदिर
- अहोबलम नृसिंह मंदिर, आंध्र प्रदेश
- यादगिरि गुट्टा नृसिंह मंदिर, तेलंगाना
- सिंहाचलम नृसिंह मंदिर, आंध्र प्रदेश
- केरल का श्री लक्ष्मी नृसिंह मंदिर
क्या देवी सरस्वती ब्रह्मा जी की पुत्री थीं या पत्नी? जानिए इस पौराणिक रहस्य की पूरी सच्चाई!
होलिका दहन की पौराणिक कथा
होलिका दहन की कहानी भक्त प्रह्लाद, होलिका और हिरण्यकशिपु से जुड़ी है।
- हिरण्यकशिपु एक अहंकारी राक्षस राजा था, जिसने खुद को ईश्वर मान लिया था।
- उसका पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था, जिससे हिरण्यकशिपु नाराज रहता था।
- हिरण्यकशिपु ने अपनी बहन होलिका को आदेश दिया कि वह प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठे।
- होलिका को आग में न जलने का वरदान था, लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद सुरक्षित बच गया और होलिका जलकर भस्म हो गई।
इस घटना की याद में होलिका दहन किया जाता है, जो यह संदेश देता है कि सच्ची भक्ति और अच्छाई की हमेशा जीत होती है।
होलिका दहन की पूजा विधि
1. होलिका दहन की तैयारी
- होलिका दहन के लिए लकड़ियाँ, गोबर के उपले, नारियल, गंगाजल, रोली, चावल, हल्दी, कच्चा सूत आदि एकत्र करें।
- खुले स्थान पर होलिका का ढांचा बनाएं।
2. पूजन प्रक्रिया
- होलिका पर रोली, चावल, हल्दी और फूल अर्पित करें।
- कच्चे सूत को होलिका के चारों ओर लपेटें और रक्षा सूत्र बांधें।
- नारियल को होलिका के पास रखें और गंगाजल छिड़कें।
- शुभ मुहूर्त में होलिका में अग्नि प्रज्वलित करें और परिक्रमा करें।
3. परिक्रमा और प्रसाद वितरण
- होलिका की तीन या सात बार परिक्रमा करें और भजन-कीर्तन करें।
- होलिका की राख को शुभ माना जाता है और इसे तिलक के रूप में लगाया जाता है।
होलिका दहन का महत्व
1. आध्यात्मिक महत्व
- यह पर्व हमें बुराई पर अच्छाई की विजय का संदेश देता है।
- भगवान विष्णु की भक्ति की महिमा को दर्शाता है।
2. सामाजिक महत्व
- समाज में ईर्ष्या, द्वेष और नकारात्मकता को दूर करने का प्रतीक है।
- सामूहिक पूजा और परिक्रमा से लोगों में आपसी प्रेम और भाईचारा बढ़ता है।
3. वैज्ञानिक महत्व
- होलिका दहन से वातावरण शुद्ध होता है और हानिकारक कीटाणु नष्ट होते हैं।
- मौसम में बदलाव के कारण होने वाले संक्रमण और बीमारियों से बचाव में सहायक होता है।
होलिका दहन के दौरान ध्यान रखने योग्य बातें
✅ सुरक्षा का ध्यान रखें – आग से उचित दूरी बनाएं और अग्निशमन उपकरण रखें।
✅ पर्यावरण का ख्याल रखें – प्लास्टिक और हानिकारक वस्तुओं का उपयोग न करें।
✅ सामाजिक दूरी बनाए रखें – भीड़भाड़ से बचें और आवश्यक स्वास्थ्य निर्देशों का पालन करें।
निष्कर्ष
होलिका दहन केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं है, बल्कि यह हमें जीवन में सच्चाई, भक्ति और अच्छाई के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। यह पर्व नकारात्मकता को जलाकर सकारात्मकता को अपनाने का संदेश देता है।
इस होलिका दहन 2025 पर, आइए हम सभी ईर्ष्या, घृणा और द्वेष को जलाकर प्रेम, भाईचारे और सकारात्मकता का स्वागत करें!
🔥 “होलिका दहन के इस पावन पर्व पर, शुभकामनाएँ!” 🔥
होलिका दहन क्यों किया जाता है?
होलिका दहन बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है और प्रह्लाद-होलिका की कथा से जुड़ा है।
होलिका दहन किस दिन और समय पर करना चाहिए?
2025 में 13 मार्च की रात 11:26 बजे से 12:30 बजे तक शुभ मुहूर्त रहेगा।
भद्रा काल में होलिका दहन क्यों वर्जित है?
भद्रा काल को अशुभ माना जाता है, इस दौरान किए गए कार्यों से नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
होलिका दहन के बाद राख का क्या उपयोग होता है?
इस राख को शुभ माना जाता है और इसे शरीर पर तिलक के रूप में लगाया जाता है।